केंद्र की मोदी सरकार अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में एक देशभर में बनवाए गए शौचालयों को बताती है। लेकिन शौचालय निर्माण को लेकर सरकार जो दावे करती है, क्या वह हक़ीक़त हैं। ताज़ा ख़ुलासे से ये बात सामने आई है कि मध्य प्रदेश में सरकार ने 4.5 लाख शौचालय बनाने का दावा किया, लेकिन ये निर्माण सिर्फ़ कागज़ों पर हुआ, ज़मीन पर नहीं।
अंग्रेज़ी अख़बार द टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, इस मामले की जांच करने वाले अधिकारियों का कहना है कि ये 4.5 लाख शौचालय वास्तव में बने ही नहीं थे। सबूत के रूप में जिन शौचालयों की फोटो जमा की गई वह कहीं और के शौचालयों की थी। अधिकारियों ने जब इन फोटोग्राफ को जीपीएस से टैग करने की कोशिश की तो यह शौचालय ‘गायब’ मिले। अधिकारियों के मुताबिक, जो शौचालय ज़मीन पर ग़ायब हैं, उनकी लागत तकरीबन 540 करोड़ रुपए है।
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दरअसल, सरकार ने मध्य प्रदेश में साल 2012 से 2018 के बीच 4.5 लाख शौचालयों का निर्माण करने का दावा किया गया था। इसके निर्माण के लिए सरकार की ओर से बताया गया था कि फंड भी जारी किया गया है। कागज़ात के ज़रिए इन शौचालयों का निर्माण भी दिखा दिया गया था। लेकिन अब ख़ुलासा हुआ है कि ये निर्माण सिर्फ कागज़ पर ही सीमित रहे, ज़मीन पर इनका निर्माण नहीं हुआ।
घोटाले का ये मामला तब सामने आया जब बेतुल के लक्कड़जाम पंचायत के कुछ ग्रामीणों ने अधिकारियों के पास जाकर शिकायत की। योजना के 4 लाभार्थियों ने बताया कि उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं है कि उनके नाम से शौचालयों का निर्माण हो चुका है।
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घोटाला सामने आने के बाद अब प्रशासन ने मध्य प्रदेश के जिलों में शौचालयों का निर्माण हुआ है या नहीं, इसकी जांच करने के लिए 350 नोडल अधिकारी नियुक्त किए हैं। इसके अलावा जो इस मामले के आरोपी हैं उनका पता लगा कर उनके खिलाफ कार्रवाई करने और लैंड रेवन्यू वसूलने के आदेश दिए गए हैं।