
जनवरी 2016 में मोदी सरकार ने पुरानी फसल बीमा योजनाओं को मिला कर एक नई योजना ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा याजना’ की शुरूआत की थी.
इस योजना पर 28 फरवरी 2016 में मध्यप्रदेश के जिला सीहोर में प्रधानमंत्री ने एक रैली के दौरान बोलते हुए कहा था कि ‘हमारे देश के किसान प्राकृतिक संकटों को झेलने के बाद भी फसल का बीमा नहीं करते हैं.
पूरे हिन्दुस्तान में 20 प्रतिशत से कम किसान ही फसल का बीमा करातें हैं. किसान जानते हैं कि फसल बीमा कराने के बाद भी उन्हें इससे कुछ मिलने वाला नहीं है. लेकिन अब जो लोग मेरी आलोचना करने ने लिए तरह तरह के प्रयोग करते हैं उन्होंने भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर सवाल उठाने की अब तक हिम्मत नहीं दिखाई है’.
प्रधानमंत्री द्वारा मध्यप्रदेश में दिया गया यह भाषण महज दो साल पुराना है. लेकिन अब एक तजा आरटीआई के जवाब में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने बताया है कि जब से यह योजना लागू कि गई है तब से लेकर अब तक फसल का बीमा कराने वाले किसानों कि संख्या में महज 0.47 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. जो कि संख्या में महज 5 लाख है.
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लेकिन इसी बीच बीमा करने वाली कंपनियां बीते दो सालों में 47,000 करोड़ से अधिक का प्रमियम किसानों से इकट्ठा कर चुंकी हैं. साथ ही आरटीआई से जानकरी मिली है कि साल 2017-2018 इस योजना के तहत फसल बीमा कराने वाले किसनों की संख्या में भारी कमी आई है लेकिन कंपनियों द्वारा किसानों से लिए जाने वाले प्रमियम में बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई.
साथ ही जब यह योजना नहीं थी, यानी साल 2016 से पहले, तब पुरानी योजानओं के तहत दो सालों में फसल का बीमा करने वाले किसानों द्वारा कंपनियों को महज 10,560 करोड़ का ही प्रमियम चुकाया गया था. और आज इस योजना के लागू होने के बाद पिछले 2 सालों में किसानों द्वारा प्रमियम 47,000 करोड़ हो गया है.
2016 से पहले दो सालों में किसानों में 10,560 करोड़ प्रमियम इकट्ठा हुआ था तब कंपनियों द्वारा किसानों के 28,564 करोड़ रुपये के दावे का भुगतान किया गया था.
यह इकट्ठे हुए 10,560 करोड़ के प्रमियम का दोगुना से भी अधिक है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत साल 2016-17 और साल 2017-18 के बीच निजी और सरकारी बीमा कंपनियों ने प्रीमियम के तहत कुल 47,408 करोड़ रुपये इकट्ठा किया है.
लेकिन किसानों के सिर्फ 31,613 करोड़ के दावों का ही भुगतान किया गया. यानी पिछले 2 सालों में कंपनियों के खाते में किसानों को महज़ 31,613 करोड़ का प्रीमियम भरा गया और उसके बाद भी कंपनियों के खाते में 15,795 करोड़ की राशी अभी भी मौजूद है.
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यह आंकड़े दिखातें है कि कैसे बीमा कंपनियों ने किसानों से ज्यादा प्रीमियम लेकर भी कम भुगतान किया. साथ ही इस योजना के बाद किस तरह फसल का बीमा कराने वाले किसानों की संख्या में भी कमी आई. वहीं पहले भी कई बार इस योजना पर सवाल खड़े होते रहे हैं.
कई मीडिया रिपोर्टस के अनुसार कई बार फसल बीमा कंपनियों ने किसानों को बीमा देने के नाम पर किसाने के हाथ में एक और दो रुपये के चैक पकड़ाएं हैं. साथ ही किसानों के एक बड़े समूह को इस योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार और किसान कार्यकर्ता पी. साईनाथ ने भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को राफेल से भी बड़ा घोटाला बताया था और 29 और 30 नवंबर को दिल्ली में संसद मार्च निकालने का भी ऐलान था.
और मांग की थी कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में कि गई सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू किया जाए. और इस रिपोर्ट पर फिर एक बार कम से कम तीन दिन की चर्चा भी संसद में की जाए.