सोहराबु्द्दीन-तुलसीराम प्रजापति फर्जी एनकाउंटर में 13 साल बाद स्पेशल सीबीआई ने अपना फैसला सुना दिया है। सीबीआई ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए 22 आरोपियों को बरी कर दिया है।

सीबीआई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्हें आरोपियों के खिलाफ पूख्ता सबूत नहीं मिले हैं। और जो थोड़े बहुत ही सबूत मिले हैं वो असंतोषजनक हैं।

इस केस में भी एक अलग वाक्य देखने को मिला। इस केस में अभियोजन पक्ष के 92 गवाह आखिरी समय पर मुंह कर गए। इसलिए सबूत के अभाव में 22 पुलिस कर्मियों को बरी कर दिया गया।

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सीबीआई के इस फैसले की गुजरात के सोशल एक्टिविस्ट और एमएलए जिग्नेश मेवानी ने आलोचना की है। उन्होंने इस फैसले पर कानून व्यवस्था पर तंज कसते हुए ट्वीट किया,

शर्मिंदगी भी आज शर्मिन्दा है : सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी को बलात्कार करने के बाद एनेस्थेसिया का इंजेक्शन देकर बेहोशी की अवस्था मे जिंदा जला दिया गया था – यह बात गुजरात में सभी जानते है। लेकिन, न्यायतंत्र कह रहा है – सोरी, सूबूत नहीं है इसलिए सब को छोड दिया जायेगा। वंदेमातरम।

कानून और सुबूतों की इतनी बड़ी- बड़ी बातें करना वाली सीबीआई को सोहराबुद्दीन तो छोड़िए उनकी पत्नी कौसर बी के साथ हुए अत्याचार के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं। जिसके देखकर यही संदेह उत्पन्न होता है कि केस की जांच ठीक तरह से नहीं की गई है।

वैसे तो सीबीआई बड़े-बड़े केस को आसानी से हल कर देती है मगर इस एनकाउंटर में 13 साल का समय लेने के बाद भी सीबीआई सुबूत नहीं जुटा पाई।

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इस कैस में सीबीआई किसे बचाना चाह रही है ये वही जान सकती है क्योंकि कि सीबीआई को 13 साल के जांच के बाद भी इस एनकांउटर और कौसी बी की हत्या के खिलाफ कोई भी सुबूत नहीं मिले।

सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के फैसले के बाद सोहराबुद्दीन के भाई रूबाबुद्दीन ने अफसोस जताया। रूबाबुद्दीन का कहा कि कोर्ट के फैसले को देखते हुए लगता है कि मेरे भाई ने खुद को मार डाला होगा।

आरोपियों के खिलाफ बहुत सारे सबूत हैं पर कोर्ट ने इन सबूतों की ओर ध्यान ही नहीं दिया है। मैंने तो पहले ही इस केस को जीतने की उम्मीद खो दी थी जब सितंबर में 6 पुलिसकर्मियों को डिस्चार्ज कर दिया गया था।

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