आज संसद मार्ग पर देश के कोने-कोने से आए सफाई कर्मचारियों ने सीवर में लगातार हो रही मौतों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। सफाई कर्मचारियों की मांग है कि सीवर की सफाई के लिए उन्हें सीवर के अंदर जाने के लिए मजबूर ना किया जाए।

साथ ही सफाई कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा, समान वेतन, और उनकी नौकरियों को स्थायी करने के साथ साथ न्यूनतम मजदूरी 18,000 रुपये प्रति माह भी सरकार की ओर से सुनिश्चित की जाए।

यह प्रदर्शन ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (ऐक्टू) द्वारा आयोजित किया गया था। इसमें ऑल इंडिया म्यूनीसिपल वर्कर्स फेडरेशन और उत्तर प्रदेश सफाई मजदूर एकता मंच जैसे मजदूर संगठनों ने भी हिस्सा लिया।

इस विरोध प्रदर्शन में प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन को लेकर भी सफाई मजदूरों में भारी नराज़गी देखी गयी।

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सफाई मजदूरों के अनुसार, मोदी सरकार ने देश में स्वच्छता भारत अभियान के नाम पर देश में बड़े पैमाने पर झूठा प्रचार किया है। सफाई कर्मचारियों का इस योजना के तहत शोषण और अधिक बढ़ गया है

वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत के नाम पर झूठा प्रचार किया है। प्रधानमंत्री की नीयत ना तो भारत को स्वच्छ बनाने की है ना ही सफाई कर्मचारियों के जीवन में सुधार लाने की है। वह हमारे नाम पर राजनीति कर रहें हैं और स्वच्छता के नाम फोटो खिचवा कर अपना प्रचार में जुटें है।

अगर उनकी नीयत सही होती तो वह अपने संसदीय क्षेत्र में उनके दौरें के ठीक एक दिन पहले हुई मौतों पर दो शब्द कह सकते थे लेकिन पिछले पांच सालों से हमने उनके भाषणों में कभी भी सीवर और सेप्टिक टैंकों में मारे जा रहे मजदूरों के प्रति किसी भी संवेदना को बहार आते नहीं देखा।

उनकी हमारे प्रति झूठी भावनाओं को हमें पहले ही समझ जाना चाहिए था। उन्होंने मैला ढ़ोने की प्रथा के अंत के लिए चलाई जाने वाली योजना के लिए अपनी सरकार में एक रुपये का फण्ड जारी नहीं किया है।

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साथ ही सीवर में मरने वाली मौतों में भी पिछले पांच सालों में बढ़त्तरी हुई है। हाल ही में प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में प्रधानमंत्री द्वारा लोकार्पण किए गए सीवरेज ट्रीटमेन्ट प्लाण्ट में दो मौत पर भी लोगों में नाराजगी देखी गई थी।

दरअसल यह दो मौतें प्रधानमंत्री के वाराणसी दौरे से ठीक एक दिन पहले ही हुई थी। इस प्रदर्शन में सफाई कर्मचारियों ने ठेके पर काम देने की प्रथा का भी भारी विरोध किया है।

वह कहते है कि ठेकेदारों के अधीन काम करना संभव नहीं है क्योंकि ठेकेदार मजदूरों से तय समय और अधिक काम करवाते है। इसी के साथ ही ठेकेदारी प्रथा में ठेकेदारों द्वारा दिया जाने वाला वेतन बहुत ही कम होता है।

रिपोर्ट- जतिन कुमार 

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