कोर्ट से तथाकथित क्लीनचिट मिलने के बावजूद राफेल मामला मोदी सरकार की गले की हड्डी बना हुआ है। इस मामले में बात सिर्फ सरकार की नहीं है, इसका ज़्यादा विवादित होने का कारण ये है कि इसमें सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका है और उनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।

पीएम मोदी पर आरोप है कि उन्होंने अपने करीबी उद्योगपति अनिल अम्बानी को इस डील का हिस्सा बनाया। और अब जो सबूत सामने आएं हैं वो ये दर्शा रहे हैं कि इस डील की कीमत को पीएम मोदी ने मीटिंग कर खुद बढ़ाया। इस से आरोप ये लगता है कि पीएम मोदी चाहते थे कि डील ज़्यादा से ज़्यादा कीमत में हो ताकि इसका हिस्सा बने अनिल अम्बानी को ज़्यादा से ज़्यादा फायदा मिल सके।

पत्रिका ‘द कैरावान’ की खबर के मुताबिक, इस डील की कीमत तय करने के लिए जो समिति सरकार द्वारा बनाई गई थी उसने इसकी कीमत 5.2 बिलियन यूरो यानि 37,000 करोड़ रुपए रखी थी। लेकिन समिति की सिफारिश के बाद पीएम मोदी ने ‘कैबिनेट कमिटी फॉर सिक्यूरिटी’ की बैठक में डील की कीमत को 7.7 बिलियन यूरो तय किया। सिफारिश से 2.5 बिलियन यूरो मतलब लगभग 18500 करोड़ रुपए ज़्यादा बढ़ा दिया।

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गौरतलब है कि ये डील अप्रैल 2015, में प्रधानमंत्री मोदी की फ़्रांस यात्रा के दौरान हुई थी। क्योंकि मोदी सरकार पुरानी डील को रद्द कर चुकी थी तो नई डील में विमानों की कीमत तय करने के लिए ‘डिफेन्स प्रोक्योरमेंट प्रोसीजर 2013’ यानि 2013 रक्षा खरीद नीति के तहत एक ‘इंडियन निगोशिएट टीम’ (आईएनटी) बनाई गई।

इस समिति में भारत सरकार की ओर से भारतीय वायुसेना के उप-मुख्य कर्मचारी और संयुक्त सचिव और अधिग्रहण प्रबंधक (वायु), संयुक्त सचिव (रक्षा ऑफसेट प्रबंधन विंग), संयुक्त सचिव और अतिरिक्त वित्तीय सलाहकार, वित्त प्रबंधक (वायु), सलाहकार (लागत) और सहायक प्रमुख एयर स्टाफ (योजना) सदस्य के रूप में थे।

वहीं फ़्रांस सरकार की ओर से वहां के रक्षा मंत्रालय का महत्वपूर्ण हिस्सा माने जाने वाले आयुध महानिदेशक (डीजीए) सदस्य के रूप में थे। मई 2015 से अप्रैल 2016 तक, इस समिति के बीच 74 बैठके हुईं। इन बैठकों के बाद भारतीय पक्षकारों की ओर से अधिकतम कीमत 5.2 बिलियन यूरो रखने का सुझाव दिया गया।

इस सबके के बाद प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में ‘कैबिनेट कमिटी फॉर सिक्यूरिटी’ की बैठक हुई जिसमें कीमत को 2.5 बिलियन यूरो बढ़ाकर 7.7 बिलियन यूरो मतलब 55,500 करोड़ रुपए कर दिया गया।

क्या है विवाद

राफेल एक लड़ाकू विमान है जिसे भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है और इस डील से उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुँचाया है। जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है।

बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल विमानों को 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।

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इनमें से 18 विमान तैयार स्थिति में मिलने थे और 108 को भारत की सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), फ्रांस की कंपनी ‘डसौल्ट’ के साथ मिलकर बनाती। अप्रैल 2015, में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी फ़्रांस यात्रा के दौरान इस डील को रद्द कर इसी जहाज़ को खरीदने के लिए में नई डील की।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई डील में एक विमान की कीमत लगभग 1670 करोड़ रुपये होगी और केवल 36 विमान ही खरीदें जाएंगें।

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